“मटक चलूँगी”: यौवन की उमंग और आत्मविश्वास का हरियाणवी गीत
राज मावर और मनीषा शर्मा का हरियाणवी गीत “मटक चलूँगी” (Matak Chalungi) एक युवती के खिलते यौवन, उसकी सुंदरता और उस पर पड़ने वाले प्रभाव का वर्णन करता है। यह गीत ग्रामीण हरियाणवी संस्कृति में रचा-बसा है, जिसमें चूड़ियों, पायल और गाँव के रास्तों का ज़िक्र है। यह गीत न केवल सुनने में मधुर है, बल्कि एक युवती के आत्मविश्वास और अपनी सुंदरता के प्रति सजगता को भी दर्शाता है।
गीत के शीर्षक का अर्थ: “मटक चलूँगी”
गीत का शीर्षक, “मटक चलूँगी,” इसके मूल भाव को प्रकट करता है। ‘मटकना’ शब्द का अर्थ होता है इतराना, ठुमकना, या एक खास अदा से चलना, जिसमें आत्मविश्वास और थोड़ा सा दिखावा भी शामिल होता है। यह गीत की नायिका के चाल-ढाल का वर्णन करता है – वह जानती है कि वह सुंदर है और इस बात को दिखाने में उसे कोई संकोच नहीं है।
गीत के बोलों का अर्थ और शीर्षक से संबंध
गीत में, युवती कहती है कि उसने घूँघट ओढ़ रखा है (“घूँघट काढ़ राखा”), जो कि पारंपरिक हरियाणवी संस्कृति का हिस्सा है। लेकिन यह घूँघट उसके लिए परेशानी का सबब बन रहा है, क्योंकि लोग उसकी सुंदरता को देखने के लिए लालायित रहते हैं। उसकी पायल की छनक (“पैजनिया छनकी”) पूरे गाँव में गूँजती है, और वह जानती है कि उसकी जवानी (“जोबन की क्यारी”) खिल रही है।
वह कहती है कि उसे डर है कि कहीं उसे नज़र न लग जाए (“नज़र लाग जावेगी”)। यह इस बात का संकेत है कि वह अपनी सुंदरता के प्रति कितनी सजग है और समाज में उसकी सुंदरता पर होने वाली प्रतिक्रियाओं को भी समझती है।
बार-बार दोहराया जाने वाला वाक्यांश “मटक चलूँगी” उसके आत्मविश्वास और निडर स्वभाव को दर्शाता है। वह अपनी चाल में, अपने पहनावे में, और अपने पूरे व्यक्तित्व में इस अदा को बनाए रखने का दावा करती है। यह शीर्षक गीत के बोलों का सार है – यह एक युवती का अपनी सुंदरता का उत्सव है, जो पारंपरिक मूल्यों और आधुनिक आत्मविश्वास का मिश्रण है।
कुल मिलाकर, “मटक चलूँगी” एक जीवंत और ऊर्जावान गीत है जो एक हरियाणवी युवती के जीवन के एक छोटे से हिस्से को दर्शाता है। यह उसकी सुंदरता, आत्मविश्वास और थोड़ी सी चंचलता का उत्सव है।